ग्राफिक एरा हिल विश्वविद्यालय, भीमताल में “गढ़ भोज दिवस” का आयोजन – पहाड़ी व्यंजनों की सुगंध से महका परिसर

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भीमताल, 6 अक्टूबर 2025 – ग्राफिक एरा हिल विश्वविद्यालय, भीमताल परिसर में “गढ़ भोज दिवस” बड़े उत्साह और पारंपरिक अंदाज़ में मनाया गया। विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ फार्मेसी द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम का उद्देश्य उत्तराखंड की पारंपरिक पाक-परंपरा को प्रोत्साहित करना, संरक्षित रखना और विद्यार्थियों में अपने स्थानीय भोजन एवं संस्कृति के प्रति सम्मान और गर्व की भावना जागृत करना था।

कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन से हुई, जिसके पश्चात कॉलेज ऑफ नर्सिंग की सहायक प्राध्यापक सुश्री बबीता बिष्ट द्वारा “उत्तराखंड के पारंपरिक खाद्य पदार्थों का सांस्कृतिक एवं पोषण मूल्य” विषय पर व्याख्यान प्रस्तुत किया गया। उन्होंने गढ़ भोज दिवस के महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि पहाड़ी खानपान केवल स्वाद तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें औषधीय गुण भी निहित हैं। उन्होंने कहा कि स्थानीय खाद्य सामग्री शरीर को स्वस्थ रखने के साथ-साथ प्राकृतिक उपचार का एक महत्वपूर्ण माध्यम है।

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इसके उपरांत विश्वविद्यालय के निदेशक ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि पारंपरिक भोजन हमारी संस्कृति, पहचान और स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है। उन्होंने छात्रों से आग्रह किया कि वे फास्ट फूड के बजाय घर के बने पौष्टिक भोजन को प्राथमिकता दें और अपने स्थानीय व्यंजनों को साझा कर उनके संरक्षण में योगदान दें।

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कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण कॉलेज ऑफ फार्मेसी के छात्रों द्वारा लगाए गए पारंपरिक भोजन के स्टॉल रहे, जिनमें स्वयं तैयार किए गए विभिन्न पहाड़ी व्यंजनों की प्रदर्शनी की गई। विद्यार्थियों ने प्रत्येक व्यंजन के पोषण और सांस्कृतिक महत्व की जानकारी दी। विश्वविद्यालय परिसर पारंपरिक मसालों की सुगंध से महक उठा और वातावरण में पहाड़ की सादगी व आत्मीयता झलक उठी।

विशेष रूप से तैयार की गई पहाड़ी थाली में “भट के डुबके”, “मास की दाल के बड़े”, “खीर” और “पहाड़ी रायता” जैसे पारंपरिक व्यंजन परोसे गए। प्रत्येक पकवान में पहाड़ की संस्कृति, परंपरा और आत्मीयता का स्वाद समाया हुआ था।

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“गढ़ भोज दिवस” के इस आयोजन ने सभी को यह स्मरण कराया कि पारंपरिक पहाड़ी भोजन केवल भोजन नहीं, बल्कि हमारी विरासत, स्वास्थ्य और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है। इस अवसर ने विद्यार्थियों और शिक्षकों को अपनी जड़ों से जुड़ने और हिमालय की अनोखी स्वाद परंपरा को सहेजने की प्रेरणा दी।

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