- डॉ वीरेंद्र यादव, एरीज, नैनीताल
क्या आपने कभी गाढ़े लाल रंग का चंद्रमा देखा है? अगर नहीं, तो आज रात आप को आप ऐसा चंद्रमा देख सकते हैं। क्योंकि आज रात 7 सितंबर को है एक पूर्ण चंद्र ग्रहण। यह चंद्र ग्रहण पूरे भारत भर से दिखाई देगा, बशर्ते बरसात और बादल हमारा साथ दें और आसमान साफ रहे। ये ग्रहण होते क्यों हैं? सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण में क्या अंतर है? चंद्र ग्रहण क्यों होता है? क्या चंद्र ग्रहण देखना सुरक्षित है? आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही सवालों के जवाब।
ग्रहण प्राकृतिक खगोलीय घटनाएँ हैं जो सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा इन तीन पिंडों के एक सीध में आने के कारण होते हैं। संयोगवश, चंद्रमा सूर्य से लगभग 400 गुना छोटा है, लेकिन सूर्य की तुलना में पृथ्वी के लगभग 400 गुना करीब है। नतीजतन, इन दोनों का आकार आकाश में लगभग एक समान दिखाई देता है। सूर्य ग्रहण के समय सूर्य और पृथ्वी के बीच चंद्रमा होता है, जिससे चंद्रमा की छाया पृथ्वी के कुछ हिस्से पर पड़ती है। यदि आप उस हिस्से से सूर्य की तरफ देखें तो चंद्रमा सूर्य को ढँकते हुए दिखाई देगा। यही होता है सूर्य ग्रहण।
इसके उलट चंद्र ग्रहण के समय सूर्य और चंद्रमा के बीच पृथ्वी होती है, जिससे पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है, जैसा कि पहले चित्र में दिखाया गया है। इस छाया के 2 प्रकार होते हैं – गहरी छाया को प्रच्छाया कहा जाता है और हल्की छाया को उपच्छाया कहा जाता है। उपच्छाया का आकार बड़ा और उसके मध्य में स्थित प्रच्छाया का आकार छोटा होता है। इसलिए यह संभव है कि चंद्र ग्रहण के समय चंद्रमा पृथ्वी की केवल हल्की छाया या उपच्छाया से गुज़रे, परंतु यह छाया इतनी धुंधली होती है कि इसे आँखों से देख पान बहुत कठिन है और हमें पता भी नहीं चलेगा की चंद्र ग्रहण हुआ है। इसे उपच्छाया वाला चंद्र ग्रहण (Penumbral Lunar Eclipse) कहते हैं। दूसरी ओर, यदि चंद्रमा पृथ्वी की गहरे रंग की छाया या प्रच्छाया से गुज़रे तब चंद्र ग्रहण आसानी से देखा जा सकता है। यदि प्रच्छाया चंद्रमा को पूरी तरह से ढँकती है तो पूर्ण चंद्र ग्रहण (Total Lunar Eclipse) दिखाई देता है, अन्यथा आंशिक चंद्र ग्रहण (Partial Lunar Eclipse) होता है। आंशिक चंद्र ग्रहण के समय पूर्णिमा में भी चंद्रमा अधूरा प्रतीत होता है। लेकिन अगर आप सोच रहे हैं कि पूर्ण चंद्र ग्रहण के समय पूरा चंद्रमा एकदम काला होगा तो ऐसा नहीं होता। वो इसलिए क्योंकि पूर्ण चंद्र ग्रहण के समय सूर्य का कुछ प्रकाश पृथ्वी के वायुमंडल से होते हुए चंद्रमा पर पड़ता है। हमारा वायुमंडल सूर्यप्रकाश के रंगों में से बैंगनी और नीले रंगों को ज्यादा बिखेरता है और लाल और नारंगी रंगों को कम बिखेरता है। वैज्ञानिक इस बिखराव को प्रकीर्णन कहते हैं। प्रकीर्णन के कारण ही दिन में आकाश हमें नीला दिखाई देता है। पूर्ण चंद्र ग्रहण के समय पृथ्वी के वायुमंडल से गुज़रने के बाद सूर्यप्रकाश का लाल रंग लगभग सीधे चंद्रमा पर पड़ता है, जबकि नीले रंग वायुमंडल में ही बिखर जाते हैं, जिससे चंद्रमा गहरे लाल रंग का प्रतीत होता है। इस स्थिति को अंग्रेजी में आम बोल-चाल में “ब्लड मून” भी कहा जाता है लेकिन यह कोई वैज्ञानिक नाम नहीं है। वायुमंडल में धूल या अन्य कणों के कारण यह रंग लगभग भूरा भी हो सकता है।
चंद्र ग्रहण शायद एक सूर्य ग्रहण जितना रोमांचक न लगे, लेकिन सूर्य ग्रहण की तुलना में यह पृथ्वी के रात वाले लगभग पूरे हिस्से से दिखाई देता है और इसकी अवधि भी लंबी होती है। पृथ्वी चंद्रमा से काफी बड़ी है तो चंद्रमा को पृथ्वी की छाया से गुजरने में ज्यादा समय लगता है। चंद्र ग्रहण शुरू से अंत तक कुछ घंटे तक का होता है। सूर्य ग्रहण को सुरक्षित रूप से देखने के लिए सूर्य ग्रहण के चश्मे, सौर फिल्टर लगे टेलीस्कोप/दूरबीन या वेल्डर के गाढ़े शीशे का उपयोग किया जाता है, क्योंकि सूर्य का तेज प्रकाश हमारी आँखें खराब कार सकता है। इसके विपरीत चंद्र ग्रहण नंगी आंखों से या बिना फिल्टर के टेलीस्कोप/ दूरबीन से देखना बिल्कुल सुरक्षित है।
सूर्य ग्रहण केवल अमावस्या के दिन ही संभव है, लेकिन हर अमावस्या को सूर्य ग्रहण नहीं होता। इसी तरह चंद्र ग्रहण केवल पूर्णिमा की रात होता है, लेकिन हर पूर्णिमा को भी चंद्र ग्रहण नहीं होता। ऐसा इसलिए है क्योंकि सामान्यतः अमावस्या या पूर्णिमा पर सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एकदम सीधी रेखा में नहीं होते। पृथ्वी के चारों ओर चंद्रमा की कक्षा, और सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की कक्षा (क्रांति वृत्त) एक प्रतल में नहीं है। उनके बीच लगभग 5 अंश का कोण है। इसके कारण आकाश में चंद्रमा के पथ और सूर्य के आभासी पथ (क्रांति वृत्त) में 2 प्रतिच्छेदन बिंदु होते हैं। जिस बिंदु पर चंद्रमा क्रांति वृत्त से ऊपर आता है, उसे आरोही या उत्तर पात (अंग्रेज़ी में Ascending Node) कहा जाता है और जिस बिंदु पर यह नीचे जाता है, उसे अवरोही या दक्षिण पात (अंग्रेज़ी में Descending Node) कहा जाता है। इन दोनों पातों को प्राचीन भारतीय ज्योतिर्विज्ञान (ध्यान दें ज्योतिषी नहीं!) में राहु और केतु के रूप में जाना जाता था। जब पूर्णिमा पर चंद्रमा इन दोनों पातों से दूर होता है, तो उस पर पृथ्वी की छाया नहीं पड़ती और कोई चंद्र ग्रहण नहीं होता। केवल जब चंद्रमा इन दोनों बिंदुओं में से किसी एक के करीब होता है, तो तीनों पिंड पर्याप्त रूप से एक सीधी रेखा में होते हैं जिससे पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है और चंद्र ग्रहण दिखाई देता है।
चूँकि ग्रहण दुर्लभ और मनमोहक खगोलीय घटनाएँ हैं, इसलिए छायाओं के ये खगोलीय खेल हमारी जिज्ञासा के लिए शानदार अवसर हैं। परंतु विज्ञान में इतनी उन्नति के बाद आज भी भारत में ग्रहण से जुड़े कई मिथक और अंधविश्वास प्रचलित हैं जो कि बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। ग्रहण नहीं देखना चाहिए, इसके दौरान बाहर नहीं जाना चाहिए, खाना बनाना या खाना नहीं चाहिए ये धारणाएँ एकदम गलत हैं। तो क्या ऐसा करना सुरक्षित है? जी हाँ, बाहर जाना, खाना बनाना या खाना बिल्कुल सुरक्षित है। ग्रहण के बारे में मानवजाति की समझ इसनी परिपक्व है कि इन्हें बच्चे भी विज्ञान या भूगोल की किताबों में पढ़ते है।
आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) ने आज के पूर्ण चंद्र ग्रहण का यूट्यूब और फेसबुक पर रात 8:45 बजे से सीधा प्रसारण (लाइव स्ट्रीमिंग) करने के लिए मनोरा पीक परिसर, नैनीताल तथा हल्द्वानी से इंतजाम किए हैं। बारिश तथा बादलों की संभावना के चलते इस बार आम जनता के लिए प्रत्यक्ष रूप से उपस्थित होकर ग्रहण देखने की व्यवस्था नहीं की गई है। इस प्रसारण की शुरुआत में ग्रहण समझने के लिए आप मेरा ऑनलाइन व्याख्यान भी देख और सुन सकते हैं। हमारे यूट्यूब चैनल या फेसबुक पेज पर लाइव स्ट्रीमिंग से जुड़ने के लिए दूसरे चित्र में दिए गए क्यूआर कोड को स्कैन करें। मेरी आशा है कि आसमान साफ रहे और हम सभी इस चंद्र ग्रहण का अपनी आँखों से आनंद उठा सकें। खुद भी देखें और अपने परिवार और दोस्तों को भी देखने के लिए आमंत्रित करें। अगर आपके मन में कोई प्रश्न हैं तो आप मुझसे virendra[at]aries[dot]res[dot]in या outreach[at]aries[dot]res[dot]in पर ईमेल के माध्यम से संपर्क कर सकते हैं।






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