प्रवासी है मगर एक दुनिया छोड आये हैं, राज्य आंदोलनकारी, सतीश पाण्डे

ख़बर शेयर करें

तुम्हारे पास जितना है उतना हम छोड आये है।
कहानी का ये हिस्सा आज तक सब से छुपाया है,
कि हम मिट्टी के खातिर अपना सोना छोड आये हैं।
नयी दुनियां बना लेने की एक कमज़ोर चाहत में,
पुरानी दहलीज को सूना छोड आये हैं।
पका के रोटियां रखती थी माँ जिसमें प्यार से,
निकलते वक्त वो रोटी की डलिया छोड आये हैं।
जो एक पतली सड़क चौराहे से कालाढूंगी तक जाती है,
वहीं इच्छाओं के सपनों को भटकता छोड आये हैं।
हमारे लौट आने की दुआएं करता रहता है,
हम अपने छत पे घुघूती का जोड़ा छोड आये हैं।
हम अपने साथ ले तो आए तस्वीर शादी की ,
किया था झोडा शादी में वो फोटो छोड आए हैं।
भतीजी अब सलीके से दुपट्टा ओढती होगी,
जिसे झूले में कभी हम रोता छोड आए हैं।
अभी तक बारिशों में भीगते याद आता है,
वो छाता गाय के गोठ में छोड आये हैं।
वो मंदिर जिसमें पिछौड़े से ढकी देवी ,
उसी मंदिर में डेकारे हरेला छोड आये हैं।
उधर का कोई मिल जाऐ इधर तो हम यही पूछें,
हमारी जमी कैसी है हमारा मका कैसा है।
गुजरते वक्त बाजारों में अब भी याद आता है,
कहीं पर बाल कहीं सिगौडी छोड आये हैं।
तू हमसे चाँद इतनी बेरूखी से बात करता है,
हम नैनी झील में उतरता चाँद छोड आये है।
ये दो कमरे का घर और सुलगती जिंदगी अपनी ,
वहीं इतना बडा नौकर का कमरा छोड आये हैं।
हंसी आती है अपनी अदाकारी पर खुद हमको,
बने फिरते है “सतीश” हिमालय छोड आये है।
अगर लिखने पे आ जाए तो स्याही खत्म हो जाए ,
जब इदौर आये थे तो क्या क्या छोड आये हैं।
सतीश पाण्डे इंदौर
(राज्य आंदोलनकारी)

Join WhatsApp Group

You cannot copy content of this page