पौष अमावस्या में पितृ पूजा का है महत्व,धार्मिक और आध्यात्मिक चिंतन के लिए जाता है श्रेष्ठ

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 हिन्दू धर्म में पूजा पाठ करने के कई दिन माह तिथि पर्व आते हैं उनमें एक यह भी विशेष है। 23 दिसंबर को पौष अमावस्या है। पौष महीने की पूर्णिमा में चंद्रमा पुष्य नक्षत्र में होता है, इसलिए इसे पौष कहते हैं। पौष मास में ही धनु संक्रांति होती है। सूर्य के धनु राशि में जाने पर खर मास आरंभ होता है। इस मास में मांगलिक और शुभ कार्य वर्जित होते हैं, इसलिए इस माह में पूजा-पाठ और पितरों के निमित्त किए जाने वाले धार्मिक कार्यों का विधान है। धार्मिक और आध्यात्मिक चिंतन के लिए इस महीने को श्रेष्ठ माना जाता है।

इस माह को ‘छोटा पितृ पक्ष’ भी कहा जाता है। कनागत के अलावा इस माह में पिंड दान तथा श्राद्ध कर्म के साथ-साथ भगवान विष्णु और सूर्य की पूजा का विशेष महत्त्व है। पौष अमावस्या को पितरों का पिंडदान और श्राद्ध करने से उन्हें मुक्ति मिलती है और उन्हें वैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है। वास्तव में पौष अमावस्या पितरों को मुक्ति दिलाने का दिन है। पौष मास की अमावस्या को किए जाने वाले व्रत का बहुत महत्त्व है। इस व्रत से जुड़ी एक कथा लोकमानस में बहुत प्रचलित है।

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एक ब्राह्मण था। गरीब होने के कारण उसकी बेटी का विवाह नहीं हो पा रहा था। एक दिन उसके घर एक साधु आए। उन्होंने उनकी सेवा से प्रसन्न होकर आशीर्वाद दिया। उस कन्या को विवाह के लिए एक उपाय बताते हुए कहा कि यहां से कुछ दूरी पर एक गरीब परिवार रहता है। यदि वह रोज जाकर उसकी पत्नी की सेवा करे तो उसके अशीर्वाद से उसके विवाह में आने वाली रुकावट दूर हो जाएगी।

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उस साधु की बात मानकर वह लड़की ऐसा करने लगी। उस घर में रहने वाली स्त्री यह देख कर हैरान हो जाती है कि पिछले कई दिनों से सुबह उसके उठने से पहले ही कोई चुपचाप आकर झोपड़ी की साफ-सफाई कर जाता है। उसके मन में यह जानने की उत्सुकता हुई कि आखिर यह कौन है? वह अगले दिन सुबह जल्दी उठकर छिप कर यह देखने लगी कि कौन उसकी सेवा कर रहा है। कुछ देर में वह लड़की आई और उसने रोज की तरह झोपड़ी की साफ-सफाई कर दी। तभी वह स्त्री उसके सामने आ गईऔर उससे पूछने लगी कि वह रोज इस तरह चुपचाप आकर उसके घर की साफ-सफाई क्यों करती है। लड़की ने उसे साधु वाली सारी बात बता दी। उस स्त्री ने लड़की की सच्चाई और सेवा से खुश होकर उसके शीघ्र विवाह होने का आशीर्वाद दिया। लेकिन इधर कुछ देर बाद उस स्त्री के पति की मृत्यु हो गई। इतना होने पर भी उसने हिम्मत नहीं हारी और झोपड़ी के बाहर लगे पीपल के वृक्ष की पूजा करते हुए 108 परिक्रमा की और अपने पति का जीवन लौटाने की प्रार्थना की। उसकी पूजा से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसके पति को जीवित कर दिया।

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ऐसा विश्वास है कि जो व्यक्ति पौष अमावस्या के दिन स्नान-दान कर पीपल की परिक्रमा कर भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

अरुण कुमार जैमिनि

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