भीमताल झील में महाशीर मछलियों के गलफड़ों, मांसपेशियों और जठरांत्र संबंधी मार्ग में माइक्रोप्लास्टिक की उपलब्धता की पहचान और मात्रा निर्धारित करने के लिए नमूना लिया गया। चूंकि भीमताल झील के जलग्रहण क्षेत्र के आस-पास की आबादी लगातार बढ़ रही है और कई लोगों की आजीविका झील से जुड़ी हुई है, जिसके कारण झील को माइक्रोप्लास्टिक जैसे कई विषैले प्रदूषकों के संपर्क में आने का खतरा है, यह शोध झील की वर्तमान स्थिति, झील में रहने वाले जीवों पर पड़ने वाले प्रभावों और झील से जुड़े लोगों पर इसके नतीजों को समझने में मदद करेगा।
इस तरह का शोध कार्य उत्तराखंड राज्य में पहली बार मत्स्य विभाग, भीमताल (नैनीताल) और शीतजल मत्स्यिकी अनुसंधान निदेशालय के प्रायोगिक मत्स्य फार्म एवं प्रक्षेत्र केंद्र, चंपावत के वैज्ञानिक डॉ. किशोर कुणाल के मार्गदर्शन में किया जा रहा है। महासीर के नमूने एकत्र करने वाली टीम में प्रायोगिक मत्स्य प्रक्षेत्र, चम्पावत के श्री रोहन जोशी, एवं मत्स्य विभाग, नैनीताल के मत्स्य निरीक्षक श्री विजयदीप धपोला, श्री मनोज करायत, फिशरमैन श्री मुकेश गिरी एवं श्री नदीम उल्ला शामिल रहे
“माइक्रोप्लास्टिक पांच मिलीमीटर से कम आकार के छोटे प्लास्टिक कण होते हैं वे बड़े प्लास्टिक के मलबे के टूटने से उत्पन्न होते हैं ये प्रदूषक पर्यावरण में भारी मात्रा में पाए जाते हैं और ये महासागरों, नदियों, झीलों, और मिट्टी को प्रदूषित कर रहे हैं हालिया शोधों से के अनुसार, माइक्रोप्लास्टिक जलीय जीवों द्वारा निगला जा सकता है और इसके माध्यम से यह खाद्य श्रंखला में प्रवेश कर जाता है इससे प्रदूषित जलीय जीवों के सेवन से यह मनुष्यों में पहुँच जाता है और मनुष्यों में यह हृदय सम्बन्धी बिमारियों, कैंसर एवं प्रतिरक्षी क्षमता सम्बन्धी विकारों आदि का कारण बन सकता है” – डॉ. विशाल दत्ता, जनपद मत्स्य प्रभारी, मत्स्म
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