कृष्णजन्माष्टमी में 36 घण्टों तक होता है कृष्ण लीला का गान
-कवि महेश कुमार अशांत ने 11 सोपानों में लिखा कृष्णचरितामृत
-देश के राष्ट्रीय पुस्तकालयों सहित विश्विद्यालयों में भी पड़ा जा रहा श्री कृष्णचरितामृत
-अब रामचरितमानस की तरह श्री कृष्णचरितामृत भी पड़ सकेगा लोग
भवाली। लेखक और कवियों ने उत्तराखंड के हर हिस्से में अपनी खुशबू महकाई है। तुलसीदास, सूरदास, जायसी जैसे अनेक लेखकों ने अपनी कलम से जीवन का सार लिखा हैं।
भवाली नगरीगांव में रहने वाले कवि लेखक महेश कुमार ‘अशांत’ ने कलयुग में कृष्ण की लीला को अपनी कलम से कागजो पर अंकित किया है। उन्होंने 31 सालो के अथक प्रयास के बाद श्री कृष्णचरितामृत लिख डाली।
बताया कि 31 अगस्त 1983 से उन्होंने श्री कृष्णचरितामृत लिखना शुरू किया। 20 जुलाई 2014 को 11 सोपान पूरे लिखे गए। कृष्ण लीला में 18 प्रकार के छंद है। उन्होंने बताया कि इसे प्रबंधकाव्य भी कहा जाता है। प्रबंधककाव्य को इससे पहले 1680 संवत में लेखक कवि जायसी ने लिखा था। जब पहला सोपान पूरा हुआ था, तब से आज भी 28 सालो से उनके आवास कला कुंज विवेक विहार नगारिगाव भवाली में श्री कृष्णजन्माष्टमी में कृष्णचरितामृत का पाठ किया जाता है। यह पाठ 36 घंटो तक चलता है। अशांत ने बताया कि इन सोपानों में लगभग 6 हजार पृष्ठ है। इसमे शैली रामचरितमानस के अनुरूप है। कृष्ण का पूरा जीवन चरित्र काव्यबद्ध किया गया है। दोहा, सोरठा, हरिगीतिका, चौपाई आदि 18 से ज्यादा छन्दों का प्रयोग किया गया है। उन्होंने कहा आज भी वह घण्टो लेखन में अपना समय बिताते है। कलकत्ता राजा राममोहन रॉय पुस्तकालय प्रतिष्ठान संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार में 216 किताबे गई थी। जिसके बाद उन्हें देश की कई राष्ट्रीय पुस्तकालयो में भेजा गया। साथ ही देश के कई विश्ववद्यालयो के पुस्तकालयों में भी श्री कृष्णचरितामृत पड़ा जा रहा हैं।
श्री कृष्णचरितामृत सोपान में बागेश्वर सुयालबाड़ी निवासी गिरीश अधिकारी गढ़वाल यूनिवर्सिटी प्रोफेसर डॉ पुष्पा खंडूरी के निर्देशन में पीएचडी भी कर रहे है।
महेश अशांत ने बताया कि वह चौथी कक्षा से लिखने का शौक था। वह अवधि भाषा में लिखकर अपने दोस्तों को दिखाते थे। उनकी पहली रचना 1978 में गरम दल नरम दल कृषक समाचार पत्र में प्रकाशित हुई।
उन्होंने बताया कि उनका जन्म 12 दिसंबर 1951 ई में ग्राम इब्राहिमपुर तहसील लहरपुर जनपद सीतापुर उत्तर प्रदेश में हुआ। उन्होंने एम ए हिंदी, समाजशास्त्र से करने के बाद बीटीसी, आईजीडी बॉम्बे से किया। वह पूर्व में गोविंद बल्लभ पंत इंटर कालेज भवाली में प्रवक्ता भी रहे। साथ ही पिछले 35 सालों से भवाली स्थित अपने आवास कला कुंज विवेक विहार नगारिगाव में रह रहे है।
अशांत की प्रकाशित रचनाएं
कृषक वर्तापन, वाणी परवाह, पर्वत पीयूष, दधीचि, भारत कुछ भूल रहा है, शांति दूत, राष्ट्र देव, पर्वत ग्रंथ, पाषाण देवी चालीसा, गीतामृत, विश्व कर्मा, स्वतं एकादस चालीसा, साथ ही 200 लघु रचनाएं लिखी है।
अशांत को मिले सम्मान,
काव्यशील मंच दिल्ली द्वारा साहित्य सौरभ मानद उपाधि
हिंदी सम्मेलन उत्तर प्रदेश द्वारा मैथिलीशरण गुप्त सम्मान
जैमिनी अकादमी पानीपत द्वारा भाषा रत्न सम्मान
राष्ट्रीय हिंदी परिषद मेरठ द्वारा हिदी गौरव उपाधि
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लोकतंत्र रक्षक सैनानी सम्मान
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