पर्यावरण दिवस पर राजकीय मौनपालन केन्द्र ज्योलीकोट में “एक पेड़ माँ के नाम” थीम पर वृक्षारोपण का कार्यक्रम किया गया। कार्यक्रम में मौनचर सम्बन्धित वृक्षों (पदम, च्यूरा, डोम्बिया, टिकोमा, जामुन, जकरैड़ा आदि) का रोपण किया गया। वरिष्ठ कीट विद् श्रीमती भावना जोशी जी द्वारा बताया गया कि इन वृक्षों से मधुमक्खियों को भोजन प्राप्त होता है, एवं केन्द्र द्वारा मौनचर वृक्षारोपण क्षेत्र में अपने तरह की एक नवीन पहल है, व इस पहल से क्षेत्र के मौनपालक मौनचर सम्बन्धित वृक्षारोपण हेतु प्रोत्साहित होंगे।
मधुमक्खियाँ मकरंद तथा पराग के लिए फूलों पर निर्भर करती हैं। मधुमक्खियाँ जिस वस्तु से मधु से मधु का निर्माण करती हैं। उनका संग्रह अधिकांश पेड़-पौधों पर लगने वाले फूलों से किया जाता है। कुछ ऐसे फूल होते हैं जिनसे दोनों अमृत और पराग मिलते हैं और कुछ फूलों से सिर्फ अमृत या पराग मिलता है।
अगर किसी स्थान पर मौनों का पुष्पामृत का पराग देने वाले पौधे अधिक मात्रा में लम्बी अवधि तक खिलते हैं तो वह स्थान मौनालय के लिए अच्छा माना जाता है।
पुष्पामृत शहद निर्माण के लिए उपयोगी होता है तो पराग मौनों के भोजन के लिए अत्यन्त उपयोगी हैं। शहद मौनों के लिए जहाँ कार्बोहाइड्रेट भोजन की उपलब्धि कराता है तो परग से उनके लिए प्रोटीन की प्राप्ति होती है।
मधुमक्खियों 3,4 कि०मी० तक पुष्पामृत का संग्रह करके शहद का निर्माण कर सकती हैं। इसलिए मौनालय ऐसे स्थान पर स्थापित करना चाहिए जिसके चारों ओर पुष्पामृत देने वाले पुष्प या पौधों का जंगल हो, बगीचा हो।
व्यवसायिक रूप से मौनपालन करने वालें के लिए कुछ ऐसे पौधों की जानकारी निम्न प्रकार है।

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