भवाली। हिंदी की प्रख्यात लेखिका और आलोचक प्रो. निर्मला जैन के निधन पर कुमाऊँ विश्वविद्यालय की रामगढ़ स्थित महादेवी वर्मा सृजन पीठ में शोकसभा का आयोजन किया गया। पीठ के निदेशक प्रो. शिरीष कुमार मौर्य ने कहा की ‘शहर दर शहर’ और आत्मकथा ‘जमाने में हम’ जैसी यादगार कृतियों की लेखिका के तौर अपार ख्याति अर्जित करने वाली निर्मला जैन ने हिंदी साहित्य जगत में पुरुष आलोचकों को गंभीरता से लिए जाने की मानसिकता की परंपरा को इन कृतियों के माध्यम से तोड़ा था। उनकी रचनाएं आज भी हिंदी साहित्य के विद्यार्थियों के लिए आदर्श हैं। उनकी सबसे बड़ी ताकत थी असहमति को गरिमा और दृढ़ता के साथ कहना। वह पुरुष वर्चस्व वाले साहित्यिक क्षेत्र में जगह बनाने वाली पहली महिला आलोचक थीं। पीठ समन्वयक मोहन सिंह रावत ने कहा कि प्रो. निर्मला जैन का महादेवी वर्मा सृजन पीठ से भी जुड़ाव रहा। 20 मई 2003 को महादेवी साहित्य संग्रहालय के अंतर्गत पर्यटन विभाग,उत्तराखंड सरकार द्वारा निर्मित शैलेश मटियानी पुस्तकालय के लोकार्पण समारोह में वह बतौर अध्यक्ष सम्मिलित हुई थीं। उन्होंने महादेवी वर्मा के सम्पूर्ण साहित्य पर केंद्रित वाणी प्रकाशन से 3 खंडों में प्रकाशित समग्र का संपादन भी किया था। निर्मला जैन किसी विशेष विचारधारा की आग्रही कभी नहीं रहीं। आलोचना में उनका अध्यापक व्यक्तित्व अधिक मुखर नज़र आता है। हिंदी आलोचना को सैद्धांतिक दृष्टि से समृद्ध करने का उन्हें श्रेय जाता है। उनकी आलोचना दृष्टि व्यापक और संतुलित है। अक्टूबर 1932 को दिल्ली में जन्मी निर्मला जैन ने दिल्ली में ही अपनी शिक्षा पूरी की। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से एमए, पीएचडी और डीलिट की उपाधियां प्राप्त की थीं। उनकी पहली नियुक्ति वर्ष 1956 में लेडी श्रीराम कालेज में हुई। फिर वर्ष 1970 से 1996 तक उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में अध्यापन किया। इस दौरान वर्ष 1981 से 1984 तक वह हिंदी विभाग की अध्यक्ष भी रहीं।आधुनिक हिंदी काव्य में रूप विधाएं, रस सिद्धांत और सौंदर्य शास्त्र, आधुनिक साहित्य : मूल्य और मूल्यांकन, हिंदी आलोचना का दूसरा पाठ, कथा समय में तीन हमसफ़र, दिल्ली : शहर दर शहर, जमाने में हम, पाश्चात्य साहित्य-चिंतन, कविता का प्रति-संसार (आलोचना), उदात्त के विषय में, बांग्ला साहित्य का इतिहास, समाजवादी साहित्य : विकास की समस्याएं, भारत की खोज, एडविना और नेहरू, सच-प्यार और थोड़ी-सी शरारत (अनुवाद) नई समीक्षा के प्रतिमान, साहित्य का समाजशास्त्रीय चिंतन आदि उनकी प्रमुख कृतियां हैं।वह साहित्य अकादमी के अनुवाद पुरस्कार, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, रामचंद्र शुक्ल पुरस्कार, केंद्रीय हिंदी संस्थान के सुब्रह्मण्यम भारती सम्मान, हिंदी अकादमी के साहित्यकार सम्मान, तुलसी पुरस्कार आदि से सम्मानित थीं। सभा के अंत में प्रो. निर्मला जैन को याद करते हुए दो मिनट का मौन रखकर उन्हें श्रद्धांजलि और शोकाकुल परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त की गई। शोकसभा में वरिष्ठ कवि हिमांशु डालाकोटी, ‘रिव-टेरा’ संस्था के पृथ्वीराज सिंह, अतिथि व्याख्याता मेधा नैलवाल सहित बहादुर सिंह कुँवर, ललित नेगी आदि उपस्थित थे।
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