वन अधिकार कानून वन पंचायतों को लेकर दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन

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भवाली स्थित एक होटल में वन अधिकार कानून की प्रासंगिकता और वन पंचायतों की स्थितियों को लेकर दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन वन पंचायत संघर्ष मोर्चा के बैनर तले किया गया। जिसमें भीमताल विकासखंड से 10 सरपंचों और पंच धारी विकासखंड से चार वन पंचायतों के सरपंच और भालू गाड़ वॉटरफॉल के सदस्य रामगढ़ विकासखंड के दाढ़ीमा , सिमायल, नथूवाखान बागेश्वर जनपद से जिलाध्यक्ष वन पंचायत सरपंच संगठन और 5 वन पंचायतों के सरपंचों और राम नगर विकास खंड से दो वन ग्राम के प्रतिनिधियों ने इस कार्यक्रम में प्रतिभाग किया।
कार्यक्रम का संचालन गोपाल लोधियाल के द्वारा किया गया ,बैठक में वन पंचायतों के सीमांकन और सरपंचों की मानदेय और वन पंचायतों के इतिहास को लेकर व्यापक रूप से चर्चा की गई।
धारी विकासखंड में स्थित भालू गाड़ वॉटरफॉल के सामुदायिक प्रबंधन की जानकारी वन पंचायत के पंच भवान सिंह जी के द्वारा के द्वारा वन पंचायतों की सामूहिक भागीदारी और स्थानीय स्तर पर करीब 300 परिवारों को भालू गाड़ वॉटरफॉल के सामूहिक प्रबंधन से रोजगार उपलब्ध कराने की उपलब्धि वन पंचायतों को दी।
भालू गाड़ वॉटरफॉल की अध्यक्ष राजेंद्र सिंह बिष्ट के द्वारा भालू गाड़ वॉटरफॉल के सामुदायिक प्रबंधन से स्थानीय स्तर पर जनहित कार्य स्कूली बच्चों के साथ वैज्ञानिक चेतना बढ़ाने को लेकर काम करने की जानकारी दी गई और वन अधिकार कानून 2006 की ताकत स्थानीय संसाधनों पर स्थानीय जनता का अधिकार कैसे स्थापित किया जाता है यह एक उदाहरण के तौर पर भालू गाड़ वॉटरफॉल को बनाया और उसका प्रबंधन स्थानीय लोगों के हाथ से लोगों के हाथ में आया और इस तरह के उदाहरण अन्य वन पंचायतों में और जगहों पर करने की जरूरत है स्थानीय संसाधनों पर लोगों का अधिकार स्थापित हो ।
दाडीमा ,सिमायल, वन पंचायतों में मौजूद मुक्तेश्वर चौली जाली स्थानीय वन पंचायतों के द्वारा सामूहिक से क्षेत्र का प्रबंधन करने पर सहमति बनी है।
वन पंचायत संघर्ष मोर्चा के संयोजक तरुण जोशी के द्वारा वन पंचायतों के इतिहास और वन पंचायत 1931 की नियमावली की जानकारी और सरपंचों के अधिकारों की जानकारी लोगों को साझा की और लगातार वन पंचायत नियमावली में संशोधन कर लोगों की स्वायत्तता को खत्म करने का काम किया और नियमावली में सिर्फ पंचायत में लोगों को चौकीदार की हैसियत बना दी गई है वन पंचायत जैसा शब्द भी गायब कर दिया गया है उसके बदले में ग्राम वन समिति जैसा शब्द कानूनी भाषा का शब्द बना दिया गया है वन पंचायतों में जिस तरह के अधिकार लोगों को दिए गए थे इस तरह के अधिकार पूरी दुनिया में सिर्फ उत्तराखंड की पहाड़ी जिलों में वन पंचायत के रूप में लड़कर के लिए ही था इसके साथ रिजर्व फॉरेस्ट के अंदर भी टिंबर का अधिकार लोगों ने संघर्ष के बाद लिया गया लेकिन आज यह स्थिति है टिंबर का अधिकार सिर्फ लोगों को 40% ही दिया जाता है और लगातार लोगों के अधिकारों को खत्म किया जा रहा है।
इन तमाम तरह के अधिकारों को पुनः स्थापित करने के लिए वन अधिकार कानून अधिनियम 2006 इस बात की मान्यता करता है यह कानून अपने आप में एक ऐतिहासिक कानून लोगों के पक्ष में बना हुआ है यह कानून कहता है देश में रहने वाले तमाम अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी यों के साथ जो ऐतिहासिक अन्याय हुआ है उस ऐतिहासिक अन्याय के परिमार्जन के लिए यह कानून बनाया जाता है लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है इतने सालों के बाद भी यह कानून लोगों से छुपाया गया है यह कानून उन तमाम तरह के लिखित और अलिखित अधिकारों पर लोगों के अधिकारों की कानूनी मान्यता करने की बात करता है जो परंपरागत रूप से लोगों के उपयोग में थे।
इस कानून के अंतर्गत दो तरह के अधिकार लोगों को दिए जाते हैं एक अधिकार लोगों को व्यक्तिगत अधिकार के तौर पर दिया जाता है और दूसरा अधिकार सामुदायिक वन प्रबंधन के लिए लोगों को दिया जाता है यह कानून सरकार द्वारा संचालित करीब 15 योजनाओं को लागू करने के लिए करीब एक योजना में एक हेक्टेयर तक की भूमि पर 75 पेड़ गिराए जाने पर भी अधिकार देता है जो योजनाएं वन संरक्षण अधिनियम 1980 के चलते रुकी हुई थी । इस कानून को लागू करने के बाद 1980 का संरक्षण अधिनियम खत्म हो जाता है इसमें तीन तरह की कमेटियां कानून ने बनाई है। पहली कमेटी ग्राम स्तरीय वनाधिकार समिति है यह कमेटी किसी भी सर्वेक्षित , अ सर्वेक्षित गांव मैं बनाई जा सकती है जिसका पूरा अधिकार ग्राम सभा को है।
दूसरी समिति उपखंड स्तरीय समिति तहसील स्तर पर बनाई जाती है जिसमें अध्यक्ष उप जिलाधिकारी होते हैं और एक व्यक्ति वन विभाग का एक व्यक्ति समाज कल्याण विभाग का और तीन जनता से चुने हुए प्रतिनिधि क्षेत्र पंचायत सदस्य के तौर पर इस कमेटी में शामिल होते हैं।
तीसरी कमेटी जिला स्तरीय कमेटी का निर्माण जिले स्तर पर होता है इस कमेटी में जिलाधिकारी इस कमेटी के अध्यक्ष होते हैं और एक व्यक्ति बन विभाग से इस कमेटी में होते हैं और एक व्यक्ति समाज कल्याण से इस कमेटी में शामिल होते हैं और तीन व्यक्ति जिला पंचायत से चुने हुए इस कमेटी में शामिल होते हैं वन अधिकार कानून की व्यापक रूप से जानकारी बैठक में दी गई।
बैठक में रामगढ़ के 3 गांव, धारी विकासखंड के 5 गांव में, बागेश्वर जनपद के अंदर 10 वन पंचायतों में, रामनगर विकासखंड के 4 वन ग्रामों में भीमताल विकासखंड के 4 वन पंचायतों में वन अधिकार कानून का क्रियान्वयन किया जाना तय हुआ और अगली बैठक बागेश्वर जनपद में जुलाई माह के दूसरे सप्ताह में तय हुई।

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