फूलदेई के दिन माता पार्वती की ससुराल से विदाई का ऐसा है महत्व

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फूलदेई के दिन घरों की देहरी / दहलीज पर बच्चे गाना गाते हुए फूल डालते हैं, इस त्यौहार को फूलदेई कहा जाता है। कहीं-कहीं फूलों के साथ बच्चे चावल भी डालते हैं। इसी को गढ़वाल में फूल संग्राद और कुमाऊं में फूलदेई पर्व कहा जाता है। इस त्यौहार मे फूल डालने वाले बच्चों को फुलारी कहलाते हैं। यह पर्व उत्तराखंड का एक विशेष पर्व है जहां बच्चों द्वारा बड़ों को आशीर्वाद दिया जाता है । बालपर्व फूलदेई को रचनात्मकता के साथ जोडते हुए हम प्रत्येक वर्ष उत्सव के रूप में आयोजित करते हैं। शिक्षक भास्कर जोशी बताते हैं कि फूलदेई पर्व को मनाने को लेकर कई कहानियां पहाड़ में प्रचलित हैं l 15 मार्च चैत्र 1 गते को “फुलदेई” उत्तराखंड का पवित्र त्योहार मनाया जाता है। ऐसी मान्यता बताई जाती है कि जब माता पार्वती की ससुराल के लिए विदाई हो रही थी तब वे तिल-चावलों से देहली भेंट रही थी तो उनकी सहेलियों ने रुआंसे मुख से कहा पार्वती तुम तो यहां से विदा हो रही हो अब हम तुम्हें किस तरह याद करेंगे तुम हमें अपनी कुछ निशानी यहां छोड़ दो ऐसा कहते हुए सहेलियां फकफकाने लगी तब माता पार्वती प्रसन्न मुद्रा में खिलखिलाते हुए तिल-चावलों से देहली भेटने लगी तो उनकी खिलखिलाहट से वे तिल-चावल पीले-2 फूलों में परिवर्तित हो गये और उनका नाम “प्यूली के फूल” रखा गया। माता ने सहेलियों से कहा प्रिय सखियों जब भी तुम इन पीले-2 फूल देहली पर विखेरोगे इन फूलों में तुम्हें मेरा प्रतिबिंब दिखाई देगा। तभी से चैत्र मास 1 गते को “फुलदेई” का त्योहार मनाया जाता है क्योंकि उसी दिन माता पार्वती की ससुराल के लिए विदाई हुई थी ऐसी मान्यता बताई जाती है। ये केवल देहली की पूजा नहीं बल्कि माता पार्वती की पूजा है l
क्या महिमा है उत्तराखंड में कितने गांव होंगे कोई गिनती नहीं। कमसे कम एक गांव में 20, 30 घर तो होंगे ही यदि एक गांव से 20 से 30 बच्चे फूल खेलने घरों में जायेंगे तो कितने फूलों की आवश्यकता पड़ेगी लेकिन देखने में आता है कि सारे उत्तराखंड के खेत खलिहान, गांवों, कस्बों व बाजारों के अगाड़ी, पिछवाड़ी “प्यूली” के फूलों से भरा रहता है ये माता पार्वती महती कृपा नहीं है तो और क्या है l
तो देहली पर फूल विखेरते हुए बोलते हैं

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