मध्य प्रदेश में खंडवा जिले में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग है। यही वह जगह है, जहां नर्मदा दो धाराओं में बंट जाती है। इस वजह से यहां बीच में एक टापू बन गया और इसी टापू को मंधाता पर्वत या शिवपुरी कहा जाता है। इसी पर्वत पर ओंकारेश्वर मंदिर है। कहा जाता है कि महाराज मंधाता ने इसी पर्वत पर तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न किया था। राजा मंधाता ने भगवान शिव से यही बसने का वरदान मांगा था, तब से यह ज्योतिर्लिंग यहां स्थापित है।
ओंकारेश्वर शिवलिंग स्वयंभू है। इसके दो स्वरूप हैं। एक को ओंकारेश्वर तो दूसरे को ममलेश्वर कहा जाता है। स्कंद पुराण, शिव पुराण और वायु पुराण में ओंकारेश्वर की महिमा उल्लिखित है। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव प्रतिदिन तीनों लोकों के भ्रमण के पश्चात यहां विश्राम करते हैं। इसलिए यहां प्रतिदिन भगवान शिव की विशेष शयन व्यवस्था एवं आरती की जाती है। मंदिर में भगवान शिव की गुप्त आरती भी की जाती है।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर उत्तर भारतीय नागर वास्तुकला के अनुरूप बना हुआ है। इस मंदिर को 5500 साल प्राचीन माना जाता है। इस ऐतिहासिक मंदिर के निर्माण की कोई तिथि ज्ञात नहीं है। शुरुआती साक्ष्यों के अनुसार 1063 ई. में राजा उदयादित्य ने संस्कृत स्तोत्रों के साथ चार पत्थर के शिलालेख स्थापित किए। 1195 में राजा भरत सिंह चौहान ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया और इसके बगल में एक महल बनवाया।
मंदिर का सभा मंडप 14 फुट ऊंचा और 60 विशालकाय खंभों पर टिका हुआ है। अन्य शिव मंदिरों की तरह इस मंदिर में गर्भ गृह एवं मुख्य ज्योतिर्लिंग न तो सीधे प्रवेश द्वार के सामने की तरफ है और न ही गर्भगृह के ठीक बीचोबीच।
कै से पहुंचें ओंकारेश्वर पहुंचने के लिए नजदीकी हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन इंदौर है, जहां से ओंकारेश्वर की दूरी 75 किलोमीटर है। यहां से खंडवा की दूरी 70 किलोमीटर है। इंदौर और खंडवा से आपको बस या टैक्सी मिल जाएगी।
जोगेश राय
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