ज्येष्ठ मासे सिते पक्षे दशम्यां बुध हस्तयो।
व्यतीपाते गरानंदे कन्या चंद्रे वृषे रवौ।
हरते दश पापानि तस्माद्दशहरा स्मृता।
स्कंद पुराण के अनुसार ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, दशमी तिथि, दिन बुधवार, हस्त नक्षत्र, व्यतीपात योग, गर करण, आनंद योग, कन्या राशि में चंद्रमा एवं वृष राशि में सूर्य— इन दस महायोगों से युक्त गंगा दशहरा विशेष फलदायी होता है। यह पर्व मनुष्य के दस पापों को हरने वाला है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से विष्णु लोक की प्राप्ति होती है। यदि यह तिथि सोमवार के दिन आ जाए और हस्त नक्षत्र भी हो तो उस दिन दस नहीं, संपूर्ण पापों को नष्ट करने का योग होता है। इस दिन दस प्रकार की वस्तुओं का दान देने का विधान है। इनमें शरबत, वस्त्र, अन्न, हाथ का पंखा, छाता, तिल, जूते या चप्पल, मौसमी फल, चीनी या शक्कर और मटके का दान करना चाहिए।
राजा भगीरथ के तप के प्रभाव से मां गंगा इस दिन स्वर्ग लोक से पृथ्वी पर आई थीं, इसलिए गंगा का एक नाम ‘भागीरथी’ भी है। उन्होंने भगवान राम के पूर्वज महाराजा सगर के साठ हजार पुत्रों की भस्म को स्पर्श कर मुक्ति प्रदान की थी। तभी से लोकाचार में गंगा में अस्थि विसर्जन का चलन शुरू हुआ। इस कामना के साथ कि जिस प्रकार गंगा जल के स्पर्श से सगर के पुत्रों को मुक्ति मिली, उसी प्रकार हमारे पूर्वजों को भी मुक्ति मिले। इससे पहले सरस्वती नदी में अस्थि विसर्जन का विशेष महत्व था। गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान करने से मनुष्य अपने दस पापों से छुटकारा पा जाता है। ये दस प्रकार के पाप हैं— तीन कायिक, चार वाचिक और तीन मानसिक।
शरीर से होने वाले तीन कायिक पाप— बिना कीमत चुकाए किसी की वस्तु लेना, अकारण की हिंसा एवं स्त्री के साथ दुर्व्यवहार करना। चार वाचिक पाप हैं— कठोर वचन बोलना, असत्य वचन बोलना, दूसरे की निंदा तथा असंबद्ध प्रलाप करना। तीन मानसिक पाप हैं— दूसरों की धन-संपत्ति को हड़पने की इच्छा रखना, दूसरों को हानि पहुंचाने की चिंता करना एवं व्यर्थ की बातों में दुराग्रह करना। इन दस पापों को नष्ट करने की शक्ति गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान करने में है।
यदि गंगा समीप न हो तो किसी भी नदी में विधिपूर्वक स्नान करके तिलोदक देने से भी गंगा दशहरा स्नान का फल प्राप्त हो जाता है। अगर यह भी संभव न हो तो घर में पानी में गंगा जल डालकर श्रद्धा भाव से स्नान करने से भी गंगा स्नान का फल मिल जाता है। इस दिन पितरों के नाम से तिल से तर्पण करना, दान और पूजा-पाठ करना विशेष पुण्यदायी माना गया है।
गंगा दशहरा के अगले दिन ‘निर्जला’ एकादशी या ‘भीमसेनी’ एकादशी होती है। इस दिन निर्जल रहकर एकादशी का व्रत किया जाता है। इस दिन स्नान, दान और पूजा-पाठ करने से मनुष्य को अक्षय फल की प्राप्ति होती है।
अरुण कुमार जैमिनि
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