आज के दौर में पत्रकारिता की चुनौतियां और वह बेमिसाल उदंत मार्तण्ड

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आज के दौर में जो पत्रकारिता है, और जो उस दौर की पत्रकारिता थी। उदंत मार्तण्ड के रूप में आज से करीब 200 साल पहले हिंदी पत्रकारिता का जो बिरवा उगा था, वह अब बटवृक्ष का रूप ले चुका है। 30 मई, 1826 से प्रकाशित इस साप्ताहिक पत्र का जीवन हालांकि बहुत छोटा रहा, कुल 79 अंक ही इसके प्रकाशित हो सके, पर यह एकल प्रयास हिंदी पत्रकारिता के भविष्य की नींव बन गया। उत्तर प्रदेश के पंडित युगल किशोर सुकुल ने इसके लिए अपना तन-मन-धन सर्वस्व समर्पित कर हिंदी में मिशनरी पत्रकारिता की एक प्रेरक गाथा लिख दी। दरअसल, उन्हें गहराई से यह महसूस हुआ कि अंग्रेजी में तो अनेक पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं, परंतु हिंदी का अपना कोई समाचार पत्र नहीं। हिंदी के पाठक वर्ग को भी एक ऐसे अखबार की आवश्यकता थी, जो उनकी भाषा में देश-दुनिया के सच से उन्हें रूबरू करा सके। तब अनेक प्रकार के खतरों की परवाह किए बगैर निजी संसाधनों से सुकुल जी ने यह समाचार पत्र निकाला।

सिद्धांत में मीडिया को ‘मैजिक मल्टीप्लायर’ कहकर परिभाषित किया गया है। इस ‘जादुई विस्तार’ की शक्ति के मूल में छापाखाने का आविष्कार था। तब सिर्फ प्रिंट मीडिया यानी अखबार ही थे। उदंत मार्तण्ड ने इस ‘विस्तार’ की जो नींव रखी, वह हिंदी मीडिया के विस्तार का आधार बनी। आज भारत विश्व में विभिन्न भाषाओं में समाचार पत्र-पत्रिकाओं का सबसे बड़ा प्रकाशक है। समाचार पत्रों के रजिस्ट्रार के यहां उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, देश में एक लाख से अधिक समाचार पत्र और 17 हजार पत्रिकाएं प्रकाशित होती हैं, जिनमें हिंदी के पत्रों की संख्या सर्वाधिक है। संविधान से मान्यता प्राप्त 22 भाषाओं में प्रकाशित पत्रों में हिंदी के समाचार पत्रों की संख्या 46 प्रतिशत है।

पत्रकारिता में भाषा का खासा महत्व है। उदंत मार्तण्ड की भाषा उस समय की उर्दू-फारसी मिश्रित प्रचलित हिंदी थी। पत्र के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए हिंदी, फारसी और उर्दू के विद्वान सुकुल जी ने लिखा है, ‘हिंदीभाषी अपनी निज भाषा में ही सत्य समाचार पढ़कर उसका आनंद लें।… सूर्य के निकलने से जहां कमल खिलता है, वहीं इस पत्र का नाम लेने पर आनंद प्राप्त होता है।’ भाषा के संबंध में उदंत मार्तण्ड के सिद्धांत इस पत्र के अंकों के अध्ययन से स्पष्ट है- पत्र की भाषा ‘सामान्य जन की भाषा’ होनी चाहिए। आज की पत्रकारिता में भाषा को लेकर कई तरह की चुनौतियां हैं। हिंदी समाचारपत्रों में वर्तनी की एकरूपता को लेकर दशकों पुराने प्रश्न आज भी अनुत्तरित हैं। सोशल मीडिया की बढ़ती लोकप्रियता और ताकत ने हिंदी मेें भाषायी अराजकता को बढ़ाया है। इस पर अंकुश अब अत्यंत कठिन प्रतीत होता है। संचार की भाषा के लिए यह चुनौती गंभीर है। पत्रकारिता दिवस इस अराजकता को दूर करने के लिए हमें प्रेरित करता है।

आज की पत्रकारिता में नैतिक क्षरण एक बड़ा मुद्दा होना चाहिए। इसे ‘जल्दबाजी में लिखा गया साहित्य’ कहा तो गया है, किंतु साख, सरोकार और मिशनरी तत्व इसकी मूल आत्मा हैं। वर्तमान दौर में ‘डिस्क्लेमर’, भूल सुधार आदि को सहारा मानकर तथ्यों, समाचारों, विचारों को ठीक से न प्रस्तुत करने की प्रवृत्ति पत्रकारिता के लिए घातक है और इसकी साख को लेकर तमाम तरह के प्रश्न खड़े करती है।

उदंत मार्तण्ड नाम ही इस पेशे से जुड़े नैतिक पहलू को स्पष्ट का करता है। बोलचाल में उदंत मार्तण्ड का अर्थ लगाया जाता रहा है- उगता हुआ सूर्य, लेकिन इसके निहितार्थ कहीं गहरे हैं। ‘उदंत’ शब्द का अर्थ होता है ‘समाचार’ तथा ‘मार्तण्ड’ का ‘सूर्य’। जाहिर है, सुकुल जी द्वारा प्रकाशित उदंत मार्तण्ड का एक अर्थ है- समाचार सूर्य। यह पत्र अपने समय का समाचार रूपी सूर्य ही था, जिसके प्रकाशन का उद्देश्य हिंदी पाठकों को सच्ची सूचनाओं तथा समाचारों के सकारात्मक प्रकाश से युक्त करना था।

हिंदी के प्रथम समाचार पत्र और इसके संपादक के दो संकल्प स्पष्ट हैं- ‘सत्य समाचार’ और ‘साहस’। ‘सत्य’ को समाचारों की आत्मा मानने के संकल्प के साथ उदंत मार्तण्ड का प्रकाशन शुरू हुआ। स्पष्ट है, 196 साल पहले भी समाचार पत्र का प्रकाशन साहस या जोखिम का काम था। पत्रकारिता अपने प्रारंभिक दौर से ही ‘मिशन’ थी और आज भी ‘मिशन’ है। उदंत मार्तण्ड का यह प्रेरक संदेश है।

आज की पत्रकारिता के आगे तकनीक और माध्यम की चुनौतियां तो अपनी जगह हैं ही, ‘फेक न्यूज’ ने उसकी साख के लिए एक बड़ा संकट खड़ा कर दिया है। ऐसे में, हिंदी के पत्रकार कम से कम उदंत मार्तण्ड को याद कर सकते हैं। यह अकेला समाचारपत्र आज भी किसी दीपस्तंभ या ‘लाइट हाउस’ की भांति संपूर्ण पत्रकारिता तथा समाज के मार्गदर्शन के लिए उपयोगी और प्रासंगिक है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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