शनि जयंती:: शनि भगवान को कैसे करे प्रसन्न, देते हैं धन धान्य

ख़बर शेयर करें

शनि भगवान को शास्त्रों में न्याय के प्रतीक के रूप में देखा गया है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में कृष्ण ने कहा है कि वे ग्रहों में शनि के रूप में विराजमान हैं। शनि को शनैश्चर भी कहा जाता है। सप्ताह के दिनों में शनि का दिन शनिवार है। शनि देव ने शिव जी से वरदान प्राप्त किया और न्यायाधीश बने। शिव जी ने शनि देव को वरदान देते हुए कहा तुम नव ग्रहों में न्यायाधीश की भूमिका में होंगे और देवताओं सहित सभी प्राणियों को उनके कर्मानुसार फल दोगे।

शनि व्यक्ति को उसके कर्मों के आधार पर फलाफल प्रदान करते हैं। पौराणिक कहानियों में यह कहा गया है कि शनि देव सूर्य भगवान और उनकी दूसरी पत्नी छाया के पुत्र हैं। इन्हीं कथाओं में यह बताया गया है कि शनि जब माता छाया के गर्भ में थे, तभी उनकी माता के सूर्य देव की तपस्या करने से शनि का रंग काला हो गया। एक बार उनके पिता सूर्य भगवान ने क्रोध में आकर उनका घर जला दिया था। उसके पश्चात शनि ने अपने पिता सूर्य को खुश करने के लिए काले तिल से उनकी पूजा की। हालांकि शनि और सूर्य का तालमेल कभी नहीं रहा।

शनि भगवान को उनके गुस्सैल स्वाभाव के लिए जाना जाता है। शनि मनुष्यों को उनके कर्मों का फल देते हैं। शनि यदि गलत कर्मों के लिए सजा देते हैं तो अच्छे कर्म करने वाले व्यक्ति को राजा तक बना देतेे हैं। ऐसा माना जाता है कि शनि यदि कुपित हो जाएं तो राजा को रंक बना देते हैं और उनकी कृपा हो जाए तो रंक को राजा बना देते हैं। शनि और सूर्य एक दूसरे के प्रतिकूल माने जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि सूर्य देव ने शनि देव की माता का अपमान किया था, इसलिए शनि देव की कभी अपने पिता सूर्य देव से नहीं बनी।

शनि के कुप्रभाव से बचने के लिए तिल का दान करना चाहिए। इसके अलावा शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष में जल चढ़ाना चाहिए। शनिवार को सुंदर कांड का पाठ करने से भी शनि भगवान कृपा करते हैं। शिव जी का रुद्राभिषेक शनि भगवान की क्रूरता को कम करता है और उनकी कृपा प्राप्त होती है। शनि की साढ़े साती को लेकर लोगों में बहुत सारी भ्रांतियां हैं, किंतु यदि आपने अच्छे और नैतिक कर्म किए हैं तो शनि की साढ़े साती आपको बहुत कुछ देकर जाती है।

Join WhatsApp Group

You cannot copy content of this page