पितृ पक्ष 15 दिन का होगा,श्राद्ध का महत्व और नियम

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सात सितंबर को पूर्णिमा के श्राद्ध पर चंद्रग्रहण भी

सावधानियां

● पितृपक्ष में मांस-मदिरा, प्याज-लहसुन का प्रयोग वर्जित है।

● किसी भी शुभ कार्य (जैसे विवाह, गृह प्रवेश आदि) का आयोजन न करे।

● चतुर्थी और पंचमी वाले श्राद्ध में भी यही विधि अपनाई जाती है, बस उस दिन जिनका श्राद्ध है उनके नाम/गोत्र के साथ तर्पण और पिंडदान किया जाता है।

हल्द्वानी,  सनातन धर्म में वर्ष के 16 दिन पूर्वजों को समर्पित होते हैं, इन्हें पितृ पक्ष, श्राद्ध पक्ष या महालय भी कहते हैं। ज्योतिष शास्त्र में इसे कनागत भी कहा जाता है, क्योंकि इस समय सूर्य कन्या राशि में संचार करते हैं। इस वर्ष पितृ पक्ष 15 दिन का होगा।

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पंचांग के अनुसार आश्विन मास के कृष्ण पक्ष को पितृपक्ष माना जाता है, पर इसका आरम्भ भाद्रपद पूर्णिमा से ही होता है। इस वर्ष पितृ पक्ष सात सितंबर यानी रविवार से शुरू होकर 21 सितंबर सर्वपितृ अमावस्या तक रहेगा। सात सितंबर को पूर्णिमा के श्राद्ध पर चंद्रग्रहण भी है। ग्रहण का सूतक दोपहर 12:57 से लगेगा, इसलिए इस दिन का श्राद्ध दोपहर से पहले ही कर लेना आवश्यक है।

श्राद्ध का महत्व और नियम : पौराणिक मान्यता है कि पितृ पक्ष में हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं और अपने वंशजों से तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध स्वीकार करते हैं। पितृ वास्तव में श्रद्धा के भूखे होते हैं, इसलिए इन दिनों पूरी निष्ठा से अर्पण करना चाहिए। तामसिक आहार, विवाद, क्रोध और अपमान से बचना चाहिए तथा सात्विक आचरण के साथ पितरों का स्मरण करना चाहिए।

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विशेष उपाय : पितृ पक्ष में प्रतिदिन स्नान के बाद दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पितरों को जल अर्घ्य देना चाहिए और जीवन के मंगल की प्रार्थना करनी चाहिए।

11 सितंबर को चतुर्थी-पंचमी का श्राद्ध

11 सितंबर को सूर्योदय से दोपहर 12:45 बजे तक चतुर्थी तिथि रहेगी। इसी दिन दोपहर 12:45 बजे से पंचमी तिथि प्रारंभ होकर 12 सितंबर सुबह 9:58 बजे तक रहेगी। शास्त्रीय नियम के अनुसार श्राद्ध मध्यान्ह काल में ही करना आवश्यक है। इसलिए चतुर्थी और पंचमी दोनों श्राद्ध 11 सितंबर को ही किए जाएंगे। इसलिए पहले दोपहर 12:45 बजे तक चतुर्थी का श्राद्ध करें। उसके बाद पंचमी का श्राद्ध करें।

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पितरों को करें जल अर्पण

पंडितों के अनुसार, प्रतिदिन स्नान के बाद दक्षिण मुख होकर पितरों को जल अर्पण करना चाहिए। जल का तर्पण अत्यंत फलदायी माना गया है। श्रद्धापूर्वक किए गए श्राद्ध से पितृ प्रसन्न होकर वंशजों को सुख-समृद्धि और मंगल का आशीर्वाद देते हैं।

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