महादेवी के कालखंड की आज भी बहुत-सी चुनौतियाँ : सुजाता
महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य के पितृसत्तात्मक इलाके में अपनी मजबूत पहचान स्थापित करती हैं। वह ऐसी स्त्री थीं जो अपनी शर्तों पर अपना जीवन जी रही थीं। स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य के महत्व और आधुनिक स्त्री के संकटों पर वह लगातार लिख रही थीं। महादेवी के कालखंड की बहुत-सी चुनौतियाँ आज भी हमारे सामने मौजूद हैं। उक्त विचार चर्चित लेखिका, कवयित्री व आलोचक सुजाता ने कुमाऊँ विश्वविद्यालय की रामगढ़ स्थित महादेवी वर्मा सृजन पीठ द्वारा 'आलोचना का स्त्री पक्ष' विषय पर आयोजित आॅनलाइन व्याख्यान में व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि महादेवी वर्मा की आलोचना बहुत सारे सवाल खड़े करती है। हिंदी का आलोचक उन्हें छायावादी कवयित्री के खाँचे में फिक्स कर देता है। ऐसे में उनका स्त्रीवादी व्यक्तित्व मुखर होकर सामने नहीं आ पाता। एक स्त्री जो अपने जीवन के फैसले खुद लेती है, जो अपने अकेलेपन का उत्सव मनाती है और जो पीड़ा में आनंद के दर्शन पर चली जाती है जिसमें बहुत कुछ अज्ञेय है, उसको देखने की ताप क्यों हिंदी आलोचना पैदा नहीं कर पाई? इस प्रकार उनके विशाल व्यक्तित्व को इकहरे दायरे में कैद कर दिया जाता है।
श्यामलाल काॅलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डाॅ. सुजाता ने आगे कहा कि अपने लेखकीय व्यक्तित्व को हासिल करना इस समय स्त्री लेखन के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। उसके सामने बहुत सारी सत्तायें खड़ी हैं। आलोचना, समाज, बाजार और पूँजीवाद बड़ी सत्ता की तरह खड़ा है जो उसके लेखन को नियंत्रित करना चाहता है। उसे अपने चारों ओर की इन सत्ताओं से जूझते हुए अपने लेखकत्व को पाना है। उन्होंने कार्यक्रम के दूसरे सत्र में अपनी 'धूप उगाओ', 'तुम बन की चिड़िया हो क्या', 'औसत औरत' और 'नहीं मरूंगी मैं' कविताओं का पाठ किया।
उल्लेखनीय है कि हिंदी के पहले सामुदायिक स्त्रीवादी ब्लाॅग 'चोखेरबाली' से शुरू कर स्त्रीवादी आलोचना की सैद्धांतिकी लिखने तक सुजाता ने लम्बा सफर तय किया है। उनका एक कविता संग्रह 'अनंतिम मौन के बीच', एक उपन्यास 'एक बटा दो', स्त्री विमर्श पर दो किताबें 'स्त्री निर्मिति' और 'दुनिया में औरत' के अलावा आलोचना की किताब 'आलोचना का स्त्री पक्ष' प्रकाशित है। कविता और कहानियों के लिए वह हिंदी अकादमी, दिल्ली के नवोदित लेखक पुरस्कार, लक्ष्मण प्रसाद मंडलोई स्मृति सम्मान, वेणुगोपाल स्मृति सम्मान आदि से सम्मानित हैं।
कार्यक्रम में महादेवी वर्मा सृजन पीठ के निदेशक प्रो. शिरीष कुमार मौर्य, शोध अधिकारी मोहन सिंह रावत, वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. दिवा भट्ट, डाॅ. विजया सती, शशिभूषण बडोनी, मृदुला शुक्ला, सपना भट्ट, प्रबोध उनियाल, जगदीश कुमुद, प्रो. मानवेन्द्र पाठक, डाॅ. गिरीश चन्द्र पंत, डाॅ. ममता पंत, डाॅ. शशि पाण्डे, डाॅ. खेमकरण सोमन. डाॅ. अर्चिता सिंह, डाॅ. शिवप्रकाश त्रिपाठी, मेधा नैलवाल, डाॅ. राजविंदर कौर, कविता अप्रेती, सुनीता बिष्ट, डाॅ. गिरीश पाण्डेय 'प्रतीक', गोविंद नागिला, प्रफुल्ल कुमार पंत, खीम सिंह रावत, ज्ञान प्रकाश, लक्ष्मण बिष्ट, बीना तिवारी, कल्पना बहुगुणा, गीता तिवारी, नेहा नरूका, सुधीर रंजन, डाॅ. हेमराज कौशिक, सुशील राकेश, आरती पंडवाल, रामकरन सिंह, सुमन खेर, शालिनी सिंह, पूजा पाठक, रूचि कक्कड़, मोनिका भंडारी, कात्यायनी दीप, भूपाल चन्द्र, हेमा कोश्यारी कौशिक, गोपाल लोधियाल, मालती श्रीवास्तव, शुभ्रांगना पुंडीर, शिवानी पाण्डे, ममता माली, ॠचा गौतम, विजय श्रीवास्तव, भूमिका पाण्डे, अनिल जोशी, राजेन्द्र पंत, कुमार प्रसन्ना, रमेश परिहार, मनीषा गुप्ता अपूर्व, कुमार प्रणव, रोहित सिंह, प्रियंका मिश्रा, राघवेन्द्र यादव, रश्मि, शैलेन्द्र राव, बहादुर सिंह कुँवर आदि साहित्य-प्रेमी उपस्थित थे।
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