भारत और बेल्जियम के खगोलविदों के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, पोलैंड, श्रीलंका, दक्षिण अफ्रीका, इथोपिया और केन्या के वैज्ञानिकों ने बेल्गो-इंडियन नेटवर्क फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (बिना) की 3 दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला में अंतरिक्ष विज्ञान में अत्याधुनिक गतिविधियों और अपने वैज्ञानिक सहयोग पर प्रकाश डाला। आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज), जो कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्थान है, ने भीमताल स्थित ग्राफ़िक एरा हिल यूनिवर्सिटी (GEHU) में यह कार्यशाला आयोजित की है।
बीना कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में भारत में बेल्जियम के राजदूत श्री डिडिएर वेंडरहासेल्ट ने कहा, “बेल्जियम विज्ञान नीति कार्यालय (बीईएलएसपीओ) और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) साइबर सुरक्षा, जैव विज्ञान, समुद्री विज्ञान, ब्लैक होल, जलवायु परिवर्तन और कई अन्य रोमांचक परियोजनाओं पर एक साथ काम करते हैं और यह कार्यशाला भारत-बेल्जियम सहयोग की वैज्ञानिक क्षमता पर जोर देगी”।
श्री एस के वार्ष्णेय, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के प्रमुख, डीएसटी ने जोर देकर कहा कि अनुसंधान के लिए नेटवर्किंग महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा, “विभिन्न संभावनाओं से आम चुनौतियों का समाधान करने में सहयोग के लिए नेटवर्किंग पहला कदम है।”
भारतीय और बेल्जियम सौर अंतरिक्ष मिशन और सूर्य का अध्ययन करने के लिए भारत के पहले अंतरिक्ष मिशन आदित्य एल-1 के बारे में रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए एरीज के निदेशक प्रो दीपांकर बनर्जी ने कहा “हमें विभिन्न संस्थानों में अधिक से अधिक युवाओं को आकर्षित करने की आवश्यकता है”।
बेल्जियम की रॉयल वेधशाला के डॉ. पीटर डी कैट (आरओबी; बीना के बेल्जियाई मुख्य अन्वेषक) ने बीना कार्यशाला की उत्पत्ति और इसकी गतिविधियों पर विस्तार से बताया, जबकि एरीज के डॉ. संतोष जोशी (बीना के भारतीय मुख्य अन्वेषक) ने वैज्ञानिक कार्यक्रमों और तीसरी बीना कार्यशाला की नेटवर्किंग गतिविधियाँ का विवरण दिया।
एरीज और ग्राफ़िक एरा हिल यूनिवर्सिटी, भीमताल के बीच समझौता ज्ञापन के भाग के रूप में इस कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है। इस अवसर पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए प्रो. नरपिंदर सिंह, कुलपति, ग्राफिक एरा डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी, जो देश के शीर्ष 100 विश्वविद्यालयों में शामिल है, और प्रो. जे. कुमार, प्रतिकुलाधिपति, ग्राफिक एरा हिल यूनिवर्सिटी ने बेल्जियम के राजदूत के साथ बेल्जियम के शीर्ष संस्थानों के साथ सहयोग के बारे में चर्चा की।
बीना एक नेटवर्क है जो बेल्जियम और भारतीय संस्थानों के बीच अंतरिक्ष अनुसंधान में सहयोग को बढ़ावा देता है। इस द्विपक्षीय सहयोग की पहल 2014 में एरीज के डॉ. संतोष जोशी और बेल्जियम के रॉयल ऑब्जर्वेटरी के डॉ. पीटर डी कैट द्वारा की गई थी। इस परियोजना के परिणाम एरीज, नैनीताल, उत्तराखंड की देवस्थल वेधशाला में दो भारतीय-बेल्जियाई दूरबीनों: 3.6-मी देवस्थल ऑप्टिकल टेलीस्कोप (डीओटी) और कल ही उद्घाटन किया गया 4-मी अन्तराष्ट्रीय तरल दर्पण दूरबीन (आईएलएमटी) के रूप में देखे जा सकते हैं। बीना सहयोग ने भारत में सबसे बड़े आकार के इन ऑप्टिकल दूरबीनों को मजबूत किया है। अगली पीढ़ी के लिए वैज्ञानिक प्रकाशनों और जनशक्ति प्रशिक्षण दोनों के संदर्भ में इस सहयोग का परिणाम सराहनीय रहा है।
2014 से, अंतर्राष्ट्रीय प्रभाग, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी; भारत सरकार) और बेल्जियम विज्ञान नीति कार्यालय (बीईएलएसपीओ, बेल्जियम सरकार) दोनों देशों में शोध यात्राओं और कार्यशालाओं के आयोजन के लिए धन उपलब्ध कराकर बीना को लगातार समर्थन दे रहे हैं। अब तक बीना की दो कार्यशालाएं हो चुकी हैं। पहली कार्यशाला ‘3.6-मी डीओटी और 4.0-मी आईएलएमटी दूरबीन के उपकरण और विज्ञान’ 2016 में नैनीताल में एरीज द्वारा आयोजित की गई थी। बेल्जियम में 2018 में आरओबी ने दूसरी कार्यशाला ‘बीना – बढ़ता हुआ एक अन्तराष्ट्रीय सहयोग’ की मेजबानी की थी और डीओटी से प्राप्त टिप्पणियों के साथ प्राप्त पहले परिणाम प्रस्तुत किए गए थे।
इसके साथ ही वैज्ञानिकों की सामाजिक जिम्मेदारी का निर्वाह करते हुए कार्यशाला के हिस्से के रूप में, पास के विद्यालयों (भारतीय शहीद सैनिक विद्यालय नैनीताल, मोहन लाल साह बाल विद्या मंदिर नैनीताल, सेंट मैरी कॉन्वेंट कॉलेज नैनीताल, सेंट जोसेफ कॉलेज नैनीताल, बिरला विद्या मंदिर नैनीताल, जवाहर नवोदय विद्यालय रुद्रपुर, हिमालयन प्रोग्रेसिव स्कूल किच्छा, हरमन माइनर स्कूल भीमताल, लेक इंटरनेशनल स्कूल भीमताल और सैनिक स्कूल घोड़ाखाल), कॉलेजों और विश्वविद्यालयों (बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ एप्लाइड साइंसेज भीमताल, ग्राफिक एरा हिल यूनिवर्सिटी भीमताल, एमबीपीजी कॉलेज हल्द्वानी और कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल) में छात्रों के लिए बीना प्रतिभागियों द्वारा 14 व्याख्यान भी आयोजित किये गए हैं।
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