भू कानून::राजनैतिक पार्टियों ने लगातार अपने केंद्रीयकृत आकाओं को ख़ुश करने के लिए ज़मीनों का बंदरबाट किया हैं, शंकर सागर

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भू-अध्यादेश अधिनियम अभियान उत्तराखंड परिवार ने 2016 से लगातार हिमांचल की तर्ज़ पर हों भू-क़ानून की मांग को सम्पूर्ण उत्तराखंड के आम जनमानस के अंतःकरण तक इस मांग को पहुंचाया हैं.. उससे पहले राज्य आंदोलन के समय ज़ब हम नन्हें राज्य आंदोलनकारी थे तब से ही हम हिमांचल जैसे राज्य की परिकल्पना करते आये हैं.. पर 9 नवंबर 2000 को राज्य बनने के बाद से तमाम राजनैतिक पार्टियों ने यहाँ क्रमशः राज तो किया पर यहां की जनभावनाओं को कभी नहीं समझा 2004 व 2007 में क्रमशः 500 वर्ग मीटर प्रति परिवार व 2007 में 250 वर्ग मीटर प्रतिव्यक्ति का क़ानून नहीं अध्यादेश लागू हुआ हमने तब भी इसका विरोध किया.. अभियान ने 2012 से देश के सभी राज्यों का भू-क़ानून पढ़ना शुरू किया हमने देखा की सभी हिमालयी राज्यों का अपना एक पृथक भू-क़ानून हैं.. नार्थ ईस्ट में तो सरकार भूमिहीन हैं वहाँ ग्रामसभा कॉन्सिल, ब्लाक कॉन्सिल, और जिला कॉन्सिल के पास भूमि बैंक हैं.. कोई भी अगर विकास की योजना केंद्र या राज्य सरकार निहित करवाती हैं तो सरकार को इन कॉन्सिलों से ज़मीन मांगनी पड़ती हैं और ये उतनी ही जमीन देते हैं जितनी उस योजना को आवश्यकता हैं.. हिमांचल का भी अपना एक अतिसुरक्षित भू-क़ानून हैं सेक्शन 118 जो कृषि योग्य भूमि को पूर्णरूप से सुरक्षित व संरक्षित करता हैं जिसे हिमांचल ने संविधान के अनुसूची 6 में सुरक्षित भी करवा रखा हैं.. दुर्भाग्य से उत्तराखंड ही एक ऐसा राज्य हैं जो सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी अतिसुरक्षित होना चाहिए था क्योकि यह राज्य दो-दो अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से घिरा हैं पूर्व में नेपाल से और उत्तर में चीन से.. फिर भी यहाँ कोई भी बाहरी आत्तायी, आयतीत व बाहरी भू-माफ़िया जितनी मर्ज़ी उतनी ज़मीन ख़रीद सकता हैं.. 2007 से लेकर शासन के अंदर कई प्रकार के अध्यादेश लाये गये भूमि से सम्बंधित जो आम जनता को पता नहीं चलने दिया गया और ना जनता को ईतना मतलब था की क्या हों रहा हैं उसे जानने का.. राजनैतिक पार्टियों ने लगातार अपने केंद्रीयकृत आकाओं को ख़ुश करने के लिए ज़मीनों का बंदरबाट किया हैं उसमें क्षेत्रीय पार्टी उक्रांद भी बराबर की हिस्सेदार रही हैं क्योकि उक्रांद ने क्रमशः कांग्रेस व भाजपा के साथ सत्तासुख भोगा और सत्ता के दौरान कभी भी भू-क़ानून की बात नहीं की.. 2018 में त्रिवेंद्र सरकार राज्य में सुनामी ले आयी पूर्व की सभी भू-सम्बन्धी क़ानून को दरकिनार कर त्रिवेंद्र सरकार ने इन्वेस्टर समिट मीट का बड़ा हैलोजन का गुब्बारा फुलाया और इसकी आड़ में उत्तराखंड को बेचने के लिए तस्तरी में सजोकर रख दिया.. हमारा हिमांचल की तर्ज़ पर हों भू-क़ानून का अभियान लगातार जारी था हमने इस राज्य विरोधी क़ानून का जमकर विरोध किया और तब और अधिक ऊर्जा के साथ लगातार जनजागरण करते हुए.. कभी सेमिनार, चर्चा, परिचर्चा, साईकिल यात्रा, मैराथन, 2500 किलोमीटर की प्रसिद्ध धामों के श्री चरणों भू-क़ानून की ज्ञापन अर्पित यात्रा, गढ़वाल कुमाऊँ में कई प्रेस वार्ताएं, विधानसभा घेराव, डोर टू डोर यात्रा, सभी मुख्यमंत्रियों को सैकड़ो बार ज्ञापन देना, सभी जिलाधिकारियों ज्ञापन देना, 84 दिनों तक चलने वाली राज्य की सबसे बड़ी महिलाओं का अनशन, इन सब अभियानों से राज्य की जनता भी चेत गयी और चुनाव आते ही सरकार को दबाब में लाकर भू-संसोधन समिति गठित करवाना.. विधानसभा में विपक्ष से भू-क़ानून के प्रश्न लगवाना व सत्ता पक्ष के विधायकों को भी विश्वास में लेना.. चुनाव के समय विपक्ष व सत्ता पक्ष के मेनिफेस्टो में भू-क़ानून को लाज़मी बनवाना.. ये सब अभियान का अहम हिस्सा व रणनीति थी.. भू-संसोधन समिति गठित होने के बाद लगातार 19 दौर की बातचीत और एक-एक बिंदु पर चर्चा करके आज जो 23 बिंदुओं की रिपोर्ट सरकार तक पहुंचाई गयी हैं इन सब में भू-अध्यादेश अधिनियम अभियान का रात-दिन एक-एक प्रहर लगा हैं.. समिति रिपोर्ट सौंपने में ज्यादा देरी ना करें इसलिए समिति पर लगातार दबाब बनाया गया.. जैसे ही समिति ने समय पर रिपोर्ट सौंपी हैं.. ठीक उसके बाद चीफ सेक्रेटरी से मिलना और जल्द 23 बिंदुओं की इस रिपोर्ट को कैबिनेट में लाने का लगातार दबाब बनाया जा रहा हैं.. इसी क्रम में मुख्यमंत्री जी से भी अभियान के सदस्य लगातार मिल रहें हैं… अब सरकार व शासन से अभियान को पूर्ण विश्वास दिलाया गया हैं की जल्द ही उत्तराखंड को उसके सपनों का एक पृथक हिमांचल की तर्ज़ पर भू-क़ानून मिलने वाला हैं…
नहीं तो अभियान अपने 84 दिनों के स्थगित अनशन को पुनः जारी

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