भवाली आर्य समाज मंदिर में महात्मा गांधी ने जनसभा को किया था संबोधित

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-इतिहास में खास पहचान रखता है आर्य समाज मंदिर

-उत्तराखंड में ऐतिहासिक दलित चेतना का स्मारक हैं आर्य समाज मंदिर

भवाली। आर्य समाज मंदिर कभी नगर की सान हुआ करता था। बड़ी बड़ी सभाओ का संचालन यहां किया जाता था। स्वर्गीय बाबू शम्भूनाथ पत्नी रामेश्वरी देवी ने यह जमीन आर्य समाज को दान दी थी। जिसके बाद 1921 में आर्य समाज मंदिर की स्थापना की गई थी। इस मंदिर को जनहित चेतना का स्तंभ माना जाता था। समाज के हर वर्ग को आपस में जोड़ने का कार्य यहां किया जाता था।
आर्य समाज मंदिर की खस्ता हालत से यहां पड़ी वेद पुराणों की किताबें लाइब्रेरी सहित खराब पड़ी हैं। यहां 1935 में बनी लाइब्रेरी में ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, उपनिषद, पुराण , संस्कृत वेद, व अन्य महात्माओं की लिखी किताबे धूल खा रही है। लाइब्रेरी में ताला जड़ा गया है। यहां लाइब्रेरी में किताबे तो है लेकिन पड़ने वाला कोई नही। आर्य समाज मंदिर की खस्ता हालत होने से यहां कोई नही पहुँचता। नगर के मुख्य चौराहे पर होने के बावजूद आजतक किसी को मंदिर की हालत पर तरस नही आया। संगठन मंत्री प्रवीण कपिल ने बताया कि सबसे पहले स्वर्गीय भूमित्र आर्य ने मंदिर को संभाला, वह दलित आंदोलन, कुमाऊँ शिल्पकार सभा, जन जागृति आंदोलन में सक्रिय रहे। सन 2000 में उनके देहांत के बाद आर्य समाज की हालत खस्ता होती चली गई। लगभग 100 साल पहले लकड़ी से बने आर्य समाज मंदिर की अब खस्ता हाल है। कभी भी मंदिर भवन के गिरने का खतरा बना हुआ है। उन्होंने बताया कि मंदिर की देखरेख नही होने से मंदिर की हालत खराब होती चली गई। जिससे वर्तमान में मंदिर के अस्तित्व को खतरा बना हुआ है। बताया कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी 15 जून 1929 में अपनी नैनीताल अल्मोड़ा यात्रा के दौरान कई बार आर्य समाज मंदिर भवाली में आकर रुके। उनके साथ कस्तूरबा गांधी, मीरा बाई, दादा भाई नेरोजी, जमना बहन,पुरुषोत्तम गांधी भी यहां आए। और उन्होंने यहां जनसभा को भी संबोधित किया। गोविंद बल्लभ पंत, नारायण स्वामी, लाला लाजपत राय, जैसी महान आत्माएं यहां आकर रुकी। उन्होंने बताया कि आर्य समाज मंदिरों ने हमेशा शिक्षा प्रचार प्रसार के साथ लाखो छात्रों को अध्ययन कराया। साथ ही अनाथालयों का निर्माण कराया। वेद प्रकाशो, कुरूतियो, छुआ छुत का विरोध किया गया। और हजारों की संख्या में विवाह करवाये गए। उन्होंने कहा कि आर्य समाज उत्तराखंड की ऐतिहासिक दलित चेतना का स्मारक है।

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