गरुड़ पुराण के अनुसार पृथ्वी पर मानव की मुक्ति के चार मार्ग, ब्रह्म ज्ञान, गया में श्राद्ध, कुरुक्षेत्र में निवास, गौशाला में मृत्यु

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गरुड़ पुराण के अनुसार पृथ्वी पर मानव की मुक्ति के चार मार्ग हैं—ब्रह्म ज्ञान, गया में श्राद्ध करना, कुरुक्षेत्र में निवास और गौशाला में मृत्यु। इनमें से ‘गया’ को पितरों का मोक्ष तीर्थ कहा गया है। ऐसा विश्वास है कि स्वयं भगवान विष्णु यहां पितृ देवता के रूप में निवास करते हैं। असुर ‘गया’ के तीर्थ बनने के पीछे एक पौराणिक कथा है। कहा जाता है कि ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना करते समय असुर कुल में ‘गयासुर’ को उत्पन्न किया। असुर कुल में जन्म लेने के बाद भी गया भगवान विष्णु का परम भक्त था। असुर कुल में जन्म लेने के कारण लोग उसे हेय दृष्टि से नहीं देखें, इसलिए उसने भगवान विष्णु की घोर तपस्या की। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ने उससे वरदान मांगने को कहा। गयासुर ने भगवान से कहा कि उसके शरीर को वे इतना पवित्र बना दें कि जो भी उसको देखे, उसे मोक्ष मिल जाए। भगवान विष्णु ने उसे यह वरदान दे दिया। वरदान मिलने के पश्चात गयासुर को देखने मात्र से लोगों को मोक्ष मिलने लगा। यही नहीं, अधर्मी लोग भी पाप करके उसके पास पहुंचने लगे और गयासुर के दर्शन मात्र से उन्हें भी मोक्ष मिलने लगा। इससे स्वर्ग लोक की व्यवस्था अस्त-व्यस्त होने लगी। तब यमराज सभी देवी-देवताओं के साथ ब्रह्मा जी के पास पहुंचे। ब्रह्मा जी गयासुर के पास पहुंचे और उससे कहा कि मैं सभी देवी-देवताओं के साथ एक यज्ञ करना चाहता हूं। उसके लिए मुझे सबसे पवित्र स्थान की आवश्यकता है और तुम्हारे शरीर से अधिक पवित्र जगह इस संसार में और कोई नहीं है। यह यज्ञ तुम्हारी पीठ पर होगा। यह सुनकर गयासुर यज्ञ के लिए सहर्ष तैयार हो गए। गयासुर ने अपना शरीर यज्ञ के लिए ब्रह्मा जी को दान कर दिया। ब्रह्मा जी भगवान विष्णु, शिव सहित सभी देवताओं के साथ गयासुर की पीठ पर विराजमान होकर यज्ञ करने लगे। ऐसा कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने अपनी गदा से गयासुर के शरीर को स्थिर किया था, इसलिए उनका एक नाम ‘गदाधर’ हो गया। गयासुर के त्याग से प्रसन्न होकर त्रिदेवों ने उससे वरदान मांगने को कहा। गयासुर ने कहा, ‘हे परमेश्वर, आप त्रिदेव सभी देवताओं के साथ अनंतकाल तक इस जगह वास करें और यहां जो भी श्रद्धा भाव से पूजन करेगा, उसके पितरों के साथ उसे भी मोक्ष की प्राप्ति हो। साथ ही यह स्थान मेरे नाम से जाना जाए।’ भगवान ने उसे वरदान देते हुए कहा कि आज से यह स्थान ‘गया तीर्थ’ के नाम से जाना जाएगा। आज भी गया में फल्गु नदी के किनारे विष्णु पद मंदिर में अक्षयवट के नीचे श्राद्ध करने पर पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

अश्वनी कुमार

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